पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी – (प्रवचनकार)
समय – ई.स. १८९०-१९८०, वि.सं. १९४६-२०३७
समयसार के उपर १९ बार सभा में प्रवचन. भाषा – गुजराती, हिन्दी
इनका जन्म विक्रम संवत १९४६ वैशाख सुद दुज रविवार के दिन सौराष्ट्र के उमराला नाम के गांव मे हुआ था। उन्होनें युवावस्था में श्वेताम्बरी दीक्षा धारण की और उनके नियमों का पालन करने लगे, लेकिन अंतरंग में यह सब क्रियायें करते “कुछ गलत हो रहा हैं” ऐसा अनुभव होता था। फ़िर संवत १९७८ के फ़ाल्गुन मास में दामनगर गांव में सेठ दामोदर ने उन्हें श्री समयसार जी शास्त्र दिया। शास्त्र को देखते ही उनके मुख से सहज ही निकला कि “सेठ , यह तो अशरीरी होने का शास्त्र है। जैसे-जैसे शास्त्र का अध्ययन करते गये उन्हें जैन सिद्धांतो का सही ज्ञान होने लगा और उन्होनें संवत १९९१ चैत्र शुक्ल १३ मंगलवार महावीर जयंति के दिन सोनगढ में एक घर में पार्श्वनाथ भगवान के चित्रपट के समक्ष मुखपट्टी का त्याग करकें स्वयं को सनातन दिगम्बर जैनधर्मं के व्रती श्रावक के रुप में घोषित कर दिया। उसके बाद उन्होनें अनेको शास्त्रों का स्वाध्याय व प्रवचन करना प्रारंभ कर दिया, जिससे एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। पूज्य गुरुदेवश्री ने सभा में १९ बार समयसार पर प्रवचन कर समयसार को घर-घर में पहुंचा दिया तथा सब जीवों को आत्मा का स्वरुप व कल्याण का मार्ग बताया।
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