19 वीं सदी के विद्वानों में पंडित सदासुख कासलीवाल का महत्वपूर्ण स्थान है। अर्थ प्रकाशिका की वचनिका में दिए गए स्वयं के परिचय के अनुसार इनका जन्म विक्रम संवत 1852 में जयपुर नगर में हुआ था। इनके पिता का नाम दुलीचंद और इनका गोत्र कासलीवाल था। इनका जन्म डेडराज वंश में हुआ था। पंडित सदासुख जी अत्यंत अध्ययनशील, प्रभावी व्यक्तित्व, सदाचारी, आत्मनिर्भर, आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। वे परम संतोषी थे, आजीविका के लिए थोड़ा सा कार्य कर लेने के बाद अध्ययन और चिंतन में ही समय व्यतीत करते थे। इनके गुरु पंडित पन्नालाल जी और प्रगुरु पंडित जयचंद जी छाबड़ा थे। इनके शिष्यों में पंडित पन्नालाल संगी, पंडित नाथूराम दोशी, पंडित पारसनाथ निगोत्या प्रमुख हैं। पंडित सदासुखजी का एक पुत्र था, जिसका नाम गणेशी लाल था। यह पुत्र भी पिता के अनुरूप होनहार और विद्वान था, पर दुर्भाग्यवश 20 वर्ष की उम्र में ही उसका वियोग हो गया, जिससे पंडित जी का मन विचलित हो गया। बाद में अजमेर निवासी सेठ मूलचंद जी सोनी ने इन्हें जयपुर से अजमेर बुला लिया।
विक्रम संवत 1923 में पंडित सदासुखजी का समाधिमरण हुआ।
इनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं -
1. भगवती आराधना वचनिका
2. सूत्रजी की लघु वचनिका
3. अर्थ प्रकाशिका
4. अकलंकाष्टक वचनिका
5. रत्नकरंड श्रावकाचार वचनिका
6. मृत्यु महोत्सव वचनिका
7. नित्य नियम पूजा
8. समयसार नाटक भाषा वचनिका
9. न्याय दीपिका वचनिका
10. ऋषि मंडल पूजा वचनिका